अरूण अर्णव खरे
एक कवि, व्यंग्य-लेखक, कहानीकार व खेल समीक्षक के इस ब्लाग में पढिये - खेल आलेख, ब्लागर की साहित्यक यात्रा, संस्मरण और ताजे घटनाक्रम पर मेरी नजर
कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल
Thursday, August 10, 2017
पिछ्ले ३० वर्षों से लेखन, देश की सभी प्रमुख खेल पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, व्यंग्य रचनाओं और खेल संबधी आलेखों का प्रकाशन, दो कविता संग्रह - "मेरा चांद और गुनगुनी धूप" और "रात अभी स्याह नहीं" तथा विभिंन खेल विषयों पर छ: पुस्तकों का प्रकाशन, रेडियो एवं दूरदर्शन पर खेल-वार्ताओं का नियमित प्रसारण
Monday, July 31, 2017
अमेरिका में काव्य पाठ
पिछ्ले ३० वर्षों से लेखन, देश की सभी प्रमुख खेल पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, व्यंग्य रचनाओं और खेल संबधी आलेखों का प्रकाशन, दो कविता संग्रह - "मेरा चांद और गुनगुनी धूप" और "रात अभी स्याह नहीं" तथा विभिंन खेल विषयों पर छ: पुस्तकों का प्रकाशन, रेडियो एवं दूरदर्शन पर खेल-वार्ताओं का नियमित प्रसारण
Tuesday, January 10, 2017
बहुत चाहा
बहुत चाहा
तुम्हारी छवि को नयनों से निकालना,
पर दर्पण से प्रतिबिम्ब के अलग होने सा
अनहोना है यह
बार-बार
इस बात का सत्यापन होता रहा |
बहुत चाहा
तुम्हारे नाम को ह्रदय से निकाल कर
हवा में उछालना
पर चुम्बक से लोहे के विकर्षण सा
असंभव है यह
बार-बार
इस बात का उदाहरण मिलता रहा |
बहुत चाहा
तुम्हारी यादों को मन से निकालकर
विस्मृति मे सजा देना
पर गुलाब से सुरभि की विमुक्ति जितना ही
अनैसर्गिक है यह
बार-बार
इस तथ्य का प्रतिपादन होता रहा |
अतएव
संभव नहीं हुआ
तुम्हारी छवि को ह्रदय से निकालना
तुम्हारा नाम हवा में उछालना
तुम्हारी यादों को विस्मृति मे सजा पाना
तुम
कोसों दूर रह्कर भी
यहीं कहीं आस पास लगते हो
तुम्हारी सुधियां जब तब
शांत ह्र्दय-सरोवर में कंकर फेंक
लहरों को लहरा देती हैं
मुरझाते गुलाब की पंखुडियों को
फिर से खिला देती हैं
ऐसे ही क्षण तब
अमूल्य धरोहर बन जाते हैं |
और एक एक क्षण में हम
सौ-सौ युगों की जिंदगी जीने का
असीम सुख पाते हैं |
पिछ्ले ३० वर्षों से लेखन, देश की सभी प्रमुख खेल पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, व्यंग्य रचनाओं और खेल संबधी आलेखों का प्रकाशन, दो कविता संग्रह - "मेरा चांद और गुनगुनी धूप" और "रात अभी स्याह नहीं" तथा विभिंन खेल विषयों पर छ: पुस्तकों का प्रकाशन, रेडियो एवं दूरदर्शन पर खेल-वार्ताओं का नियमित प्रसारण
जीरो की ब्रांड वेल्यू
.... अरुण अर्णव खरे ....
कहने को तो जीरो का कोई बाजार-मूल्य नहीं है
लेकिन जीरो की ब्रांड-वेल्यू का अपना एक बाजार है | जीरो इंटरेस्ट रेट और
जीरो बैलेंस के प्रति तो आम भारतीयों का मोह अति गंभीर क़िस्म का है । शायद ज़ीरो
की खोज भारत मे हुई थी इसलिए ज़ीरो के प्रति हमारा अनुराग विशेष दर्जे वाला है | कोई बैंक जरूरतमंदों को यदि जीरो इंटरेस्ट पर लोन देने लगे तो उसके सामने
नोटबंदी-काल से भी ज्यादा लम्बी-लम्बी लाइनें लगने में देर नहीं लगेगी | जीरो बैलेंस पर टेलीफोन कम्पनियां अपने ग्राहकों को बात करने की सुविधा देने
लगें तो क्या कहना | जिन अच्छे दिनों की लोग अर्से से प्रतीक्षा
करते रहे हैं वो तो फिर आ ही गए समझो | आज लोगों को चाहिए क्या
अनलिमिटेड डाटा और बात अथवा चेट करने की सुविधा -- वो भी जीरो बैलेंस पर -- सच मान
लो बंजर जमीन पर भी बसंत बगरो-बगरो दिखाई देने लगेगा | कुछ-कुछ ऐसा ही जनधन खातों के साथ हुआ जब एकाएक सूखे पड़े खाते लबालब हो गए | सरकार ने जीरो बैलेंस पर करोड़ों खाते खुलवाए थे - लोगों ने भी पंद्रह लाख रुपए
आने की उम्मीद में सरकार को सहयोग किया | सरकार चूकी तो नोटबंदी ने
कमाल दिखा दिया | यह जीरो के विस्तार की विस्मयकारी दास्तान है
जो अब व्यापक खोज के दायरे में है |
आजकल जीरो-टॉलरेंस और जीरो एफ०आई०आर० की भी खूब
चर्चा होती है फिर भले ही इस पर अमल के समय जिम्मेदार ही इस व्यवस्था को जीरो बटे
संनाटा कर डालें | कुछ समय पहले ही
बलात्कार के आरोप में एक नाबालिग पकड़ा गया था तब हमारे देश के समाजवाद के स्वघोषित
स्वयंभू चैंपियन नेता जी की प्रतिक्रिया थी - " बच्चा है - बच्चों से गलती हो
जाती है |" महिलाओं को उनके साथ हुए अत्याचारों की
एफ०आई०आर० किसी भी पुलिस स्टेशन में जीरो पर दर्ज कराने की सुविधा सरकार ने दे रखी
है पर कोई भी थानेदार ऐसी रिपोर्ट लिखना नहीं चाहता | उसे लगता है इधर उसने जीरो टॉलरेंस या जीरो एफ०आई०आर० में रुचि ली उधर उसका
कैरियर जीरो हुआ |
कमसिनी में भी जीरो का अपना अलग आकर्षण है | आज का हर युवा तो युवा, भूतपूर्व युवा तक चाहते हैं कि उनकी किस्मत में कोई जीरो-फिगर वाली हो | हर खाते-पीते घर की लड़की भी जीरो-फिगर में दिखना चाहती है | पता नहीं यह जीरो-फिगर का कनसेप्ट कहां से आया पर इसे जन-जन में लोकप्रिय
बनाने का काम देवी करीना ने किया है । वही देवी करीना जिन्हें देखकर गांव की
बड़ी-बूढ़ीं अक्सर उनके कुपोषित होने के भ्रम में रणधीर कपूर को कोसती रहती थी ।
जुम्मन चाचा तो यहां तक फरमाते थे कि देख कर पता ही नही चलता कि मोतरमा की कमर
कहां से शुंरु होती है और कहां पर खतम होती है । करीना जीरो फिगर की देश की पहली ज्ञात आइकॉन हैं | सरकार यदि जीरो फिगर को राष्ट्रीय पहिचान का दर्जा दे तो करीना ही इसकी सच्ची
ब्रांड एम्बेसडर हो सकती हैं |
एक समय था जब हममें से अधिकतर अंतरिक्ष को ही
जीरो समझते थे जहां जाकर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण जीरो हो जाता है | टी०वी० युग में हमारे कुछ उर्जावान रिपोर्टर्स
ने ग्राउंड-जीरो इसी जमीन पर ही खोज डाला | कारगिल और अफगानिस्तान से शुरुं हुई ग्राउंड-जीरो
रिपोर्टिंग चुनाव के मौसम में बलिया और लखनादौन तक में अपना मुकाम खोजने में सफल
रही है |
हाल के दिनों में जीरो राष्ट्रीयता की नई
पहिचान बन कर उभरा है | नोट बदलवाने के
लिए लाइनो में खड़े निरीह लोगों को कितनी ही बार इस बात से दो-चार होना पड़ा है -
देश के लिए सेना का सिपाही जीरो से तीस डिग्री नीचे तापमान में सियाचिन में महीनों
से खड़ा है और तुम देश के लिए दो-चार दिन लाइन में भी खड़े नहीं रह सकते | लोग भी देशभक्ति के इस मापक-पैमाने पर जीरो
साबित होना नहीं चाहते थे सो जीरो हुई जेबों में हाथ डालकर मुस्कुराते रहे |
अरुण अर्णव खरे
डी-१/३५ दानिश नगर
होशंगबाद रोड, भोपाल
(म०प्र०) ४६२ ०२६
मोबा० ९८९३००७७४४
ई
मेल :
arunarnaw@gmail.com
पिछ्ले ३० वर्षों से लेखन, देश की सभी प्रमुख खेल पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, व्यंग्य रचनाओं और खेल संबधी आलेखों का प्रकाशन, दो कविता संग्रह - "मेरा चांद और गुनगुनी धूप" और "रात अभी स्याह नहीं" तथा विभिंन खेल विषयों पर छ: पुस्तकों का प्रकाशन, रेडियो एवं दूरदर्शन पर खेल-वार्ताओं का नियमित प्रसारण
Saturday, December 24, 2016
देवता
-- अरुण अर्णव खरे --
तोरन
सींग आज बहुत प्रसन्न था । उसके बेटे सूरज सींग को बारवीं पास करते ही बड़े साब ने बर्कचार्ज में बाबू बना दिया था साथ ही यह भरोसा भी दिलाया था कि सूरज जैसे ही कंपूटर की परीक्षा पास कर लेगा उसे वह रेगुलर कर देंगे । इस खुशी को सबसे बाँटने तोरन साब से तीन दिन की छुट्टियाँ लेकर अपने गाँव आया था । तोरन के ख़ानदान में पहली बार कोई सरकारी बाबू बना था । उसके सारे सगे संबंधी या तो खेतिहर मज़दूर थे या फिर उसकी तरह साब लोगो के बंगलों पर काम करते थे । उसकी पत्नी पूनिया तो जैसे अपने मोड़े की उपलब्धि पर बौरा गई थी । दिन मे कितनी ही बार वह सूरज का माथा चूम चुकी थी
. इसी खुशी मे उसने बिरादरी वालों को ग्राम देवता के चबूतरे पर पूड़ी-रायता जींमने का न्योता तक दे डाला था ।
बड़े साब ने बोला था सूरज को सोमवार को ही ड्यूटी जॉइन कराने के लिए .. अतएव तोरन सूरज को लेकर इतवार को ही गाँव से वापस आ गया । सूरज की पोस्टिंग साब ने अपने चहेते कार्यपालन यंतरी के दफतर मे की थी । सूरज के काग़ज़ पत्तर पलटते हुए बड़े बाबू बिंदेसरी यादव ने पहले तोरन और फिर सूरज की ओर इतनी पैनी निगाहों से देखा कि दोनों ही सिहर गए । तोरन हाथ जोड़कर लगभग गिड़गिड़ाते स्वर में बोला - "कोनऊ कमी है का बाबू जी .. बचवा है .. आप समझा दो पूरी कर लावेगो .. मै तो कछू समझूँ न .. दूसरी जमात तक ही पड़ो है हमने"
"नहीं नहीं .. कोई कमी नहीं है .. सब काग़ज़ दुरुस्त हैं .." बिंदेसरी यादव बोले - "तुम्हें पता है कि लड़के के कितने नंबर हैं"
"नाँय मालूम मोए
.. इत्तो पता है कि वाय फस्ट कलास आओ है और इंजीनरिंग को इम्तहान भी पास करो है तबईं बड़े साब ने ईखों बाबू बना दओ"
- कहते हुए तोरन की आँखें गर्व से दमकने लगी ।
"तुम लड़के का कैरियर बरबाद कर रहे हो तोरन .. तुम्हारा लड़का तो हीरा है हीरा .. इसे क्यूँ बाबू बना रहे हो .. तुम बताओ सूरज .. कौन सा इंजीनियरिंग का इम्तिहान पास किया है तुमने " - बिंदेसरी ने उत्सुक निगाहों से दोनों की ओर बारी-बारी से देखा ।
"जी, पी०ई०टी० पास किया है .. एस०सी० की मेरिट लिस्ट में २३३वां नंबर है .. सब कहते हैं कि मनचाही ब्रांच मिल जाएगी .. पर बहुत पैसा लगता है पढ़ाई में .. बापू ख़र्च नहीं उठा पाएँगे .. बड़े साब ने कहा कि तुम्हें पक्की नौकरी लगा देंगे .. बहुत इंजीनियर बेरोज़गार घूम रहे हैं" सूरज ने बताया ।
"बड़े साब ने ऐसा कहा तुमसे" - बिंदेसरी ने आश्चर्य से पूंछा ।
"हओ" - जवाब तोरन ने दिया - "हम कहाँ से लाखों लाते .. फ़ीस देवे खों .. वो तो साब बड़े दयालु हैं हम ग़रीबन पर .. जो इत्ती किरपा करत हैं"
बिंदेसरी
बाबू ने सारे कागज व्यवस्थित किए और सूरज को आफिस में ज्वाइन कराने की आवश्यक कार्यवाही पूर्ण की | बिंदेसरी ने एक बार पुन:
सूरज को सोचने के लिए कहा था पर कम पढ़ा-लिखा तोरन तो सूरज के बाबू बन जाने से ही सातवें आसमान पर जा बैठा था | वह तो बड़े साब की किरपा के तले स्वंय को दबा महसूस कर रहा था
- उसे समझ में ही नहीं आया था कि बिंदेसरी बाबू बार-बार क्यूं पूंछ रहा है
- कहीं उसका कोई स्वारथ तो नहीं है
|
बिंदेसरी बाबू ने सूरज को ज्वाइन करवा लिया था | तोरन सूरज को वहां छोड़कर चला गया | शाम को जब दोनो मिले तो तोरन के मन में बहुत से सवाल थे | उसे कोई परेशानी तो नहीं हुई | ईई साब से उसकी भेंट हुई कि नहीं -- कुछ काम भी सीखा कि नहीं -- बिंदेसरी बाबू ने कोई गड़बड़ तो नहीं की -- आफिस के बाकी लोग कैसे लगे उसे --
"बापू -- बिंदेसरी बाबू जी ने फिर से मुझसे कहा था कि तुम्हारे जब इतने अच्छे नम्बर हैं तो तुम बाबूगिरि करके क्यूं अपना केरियर खराब कर रहे हो --
वह तो बड़े साब को भी इसका दोष दे रहे थे - कि उन्होंने जानबूझ कर मेरा केरियर खराब किया है -- वह कह रहे थे कि मुझे बैंक से लोन भी मिल जाता और कालेज की फीस भी माफ हो जाती"- सूरज जो पहले बड़ा खुश नजर आ रहा था, तोरन को कुछ
उदास सा लगा |
तोरन को ध्यान आया जब उसने बड़े साब को सूरज के इंजीनरिंग में पास हो जाने की खबर सुनाई थी तो वह बहुत खुश नजर नहीं आए थे और जब उन्होंने सूरज को बाबू बनाने के लिए तोरन से कहा था तो नीला बिटिया भी बड़े साब पर नाराज हुई थी | उसे तो सूरज के बाबू बन जाने की इतनी खुशी थी कि उसे नीला की बात से दुख हुआ था | वह समझ नहीं पाया था कि नीला बिटिया क्यूं बड़े साब पर नाराज हो रही है |
"तुम बिंदेसरी बाबू की बातन खों दिल पे न लो बिटुआ -- हो सकत है बड़े साब ने कबहुं ऊंखों फटकारो हो जासे वो उनसे चिढ़त हो -- हमने बड़े साब की बरसों सेवा करी तबहुं उन्होंने तुमाओ इतनो ध्यान रखो -- हम गरीबन की आज सुनत कौन है -- हमाई बिरादरी में आज तक कोनऊ बाबू नई बनो हतो -- तुमने तो हमाओ नाम रोशन कर दओ -- तुम अब मन लगा के काम करो -- साब कछु दिन में तुमाओ परमोसन भी कर देहें --" तोरन ने सूरज को समझाते हुए कहा |
दो माह गुजर गए | सूरज ने आफिस का काम कुछ-कुछ सीख लिया था
| सब
उसके काम और लगन से खुश थे | तोरन और पूनिया की भी सारी बिरादरी में अपने बिटुआ की उपलब्धि के कारण इज्जत बढ़ गई थी | तोरन भी बड़े साब के इस उपकार के बदले दोहरे चाव से उनकी सेवा में लगा रहता था |
बड़े साब के इकलौते बेटे प्रियेश, यानि कि चिंकू बाबा का पढ़ने में मन नहीं लगता था -- बड़े साब इस कारण परेशान रहते थे | १२वीं में वह एक बार फेल हो चुका था और इसी साल उन्होंने उसका एडमीशन डोनेशन देकर किसी कालेज में कराया था | बिटिया नीला इस बात को लेकर बड़े साब से नाराज रहती थी और कभी-कभी उनसे सूरज का उदाहरण
देते हुए उलझ जाती थी | नीला द्वारा सूरज का इस तरह पक्ष लेना तो तोरन को अच्छा लगता था पर बड़े साब से झगड़ा करना उसे नहीं सुहाता था | उसने एक दो बार अकेले में उसे समझाने की कौशिश भी की थी तो बिटिया ने "काका तुम नहीं समझोगे" कहकर चुप करा दिया था |
तोरन सींग पिछले चौबीस सालों से बोधराम निरंजन के घर पर काम कर रहा था । उस समय से जब निरंजन नया नया सहायक यंत्री के पद पर भरती हुआ था । उसकी पहली पोस्टिंग बुंदेलखंड के इलाक़े मे हुई थी जहाँ छुआ-छूत और ऊँच-नीच का भेद उस समय समाज मे कुष्ठरोग सरीखा जमा बैठा था । इस कारण बोध कुमार के घर पर कोई भी कर्मचारी काम करने को तैयार नहीं था । उसके पहले पदस्थ रहे मनोरंजन शुक्ल के घर पर काम करने वाले छुटके रैकवार और हरिलाल साहू ने साफ़-साफ़ मना कर दिया था - "साब हम घर पर काम नहीं करेंगे .. हमारी बिरादरी मे बात पता चल गई तो हम समाज से ही बाहर कर दिए जाएँगे .. हमारे बाल-बच्चों के विवाह तक नहीं हो पाएँगे .. और हमारा हुक्का-पानी, आपस मे उठना-बैठना तक हराम हो जाएगा ।"
सुनकर बोधराम सन्न रह गया था । एक झटके मे ही उसकी अफ़सरी धरातल पर आ गई थी । वह दोनों के ख़िलाफ़ अनुशासनहीनता का हंटर चलाना चाहता था लेकिन जिले के एक अनुसूचित जाति के बीडीओ के समझाने पर उसने अपना इरादा त्याग दिया था । घर के कामकाज के लिए उसने ननिहाल से दूर के एक रिश्तेदार तोरन को बुला लिया था और उसे घर पर ही सर्वेंट क्वार्टर मे रहने की जगह दे दी थी । तबसे निरंतर तोरन बोधराम के घर पर काम कर रहा था । बोधराम के कई ट्रांसफ़र हुए । शासन के नए बने प्रमोशन-नियमों के तहत जल्दी-जल्दी उसके तीन प्रमोशन भी हो गए और वह अपने साथ नियुक्त हुए अनेक अफ़सरों को पीछे छोड़ते हुए चीफ़ इंजीनियर बन गया । जल्दी-जल्दी बिना बारी के प्रमोशन पा जाने के बाद वह अहंकारी हो गया था और अपने साथी अफ़सरों तक से बदतमीज़ी करने लगा था । तोरन बोधराम के इस बदलते व्यवहार का साक्षी था | जिनसे कभी बोधराम सर कह कर बातें करता था तोरन ने बोधराम को उनसे ही कई बार बुरा सलूक करते देखा था |
चीफ़ इंजीनियर बनने के बाद अपने पहले दतिया दौरे पर बोधराम ने छुटके और हरिलाल सहित वृंदावन पटेल उपयंत्री को भी निलंबित कर दिया था । वे दोनों वृंदावन की साइट पर ही कार्यरत थे तथा वृंदावन के कहने पर ही अफ़सरों के घरों मे काम करते थे । अपनी पहली पोस्टिंग के समय से ही तीनों बोधराम के निशाने पर थे । पर दो माह के अंदर ही तीनों की बहाली के आदेश बोधराम को निकालने पड़े थे । कर्मचारी नेता भक्त चरण ने धमकी दी थी यदि चौबीस घंटे के भीतर निलंबन वापिस नहीं लिया गया तो उसके बंगले के बाहर तम्बू लगाकर भूख हड़ताल की जावेगी |
नौवीं मे पढ़ने वाली नीला को पिता का पक्षपाती व्यवहार पसंद नहीं आता था | भक्तचरण की धमकी के बाद जब बोधराम को पीछे हटना पड़ा तो वह बहुत आहत था | नीला तीनों की बहाली से खुश थी --
उसने बोधराम को थैंक्स बोला | बेटी के मुंह से ये सुनते ही वह बिफर गया | उसे लगा भक्तचरण के साथ ही उसकी बेटी भी उसकी मजबूरी का मजाक उड़ा रही है | वह बड़ी जोर से नीला पर चिल्लाया -- बिचारी रोती हुई अपने कमरे में चली गई |
बोधराम की पत्नि शामली ने उसे शांत करने की कौशिश की | बोधराम को भी लगा कि उसने अकारण ही नीला को इतनी जोर से डांट दिया है | उसने शामली से कहा - "तुम ही बताओ मै क्या करूं -- नीला हर बात में विरोध करती है - वह तो आरक्षण तक की विरोधी है -- यदि यह वैशाखी न होती तो शायद मैं भी इंजीनियर न बन पाता -- चिंकू के रंग-ढंग तुम देख ही रही
हो -- बिना आरक्षण के वह कुछ बन कर दिखा सकता है क्या -- आरक्षण के बावजूद भी उसे ढंग की नौकरी
मिलेगी
मुझे संदेह है "
"समय के साथ नीला भी सब समझ जाएगी -- इस उमर में बच्चे ऊंच-नीच नहीं समझते -- उसे
भी क्लास में कौन एस सी का मानता है - उसकी पहिचान तो एक बड़े अफसर की बेटी की है -- ऊंची जाति के गरीब बच्चों को देखती है तो व्यथित हो जाती है - उसने आप सरीखे गरीबी के दिन ही कहां देखे हैं - आप उससे प्यार से बात किया कीजिये" - शामली ने सलीके से अपनी बात बोधराम के सामने रखी |
"तुम ठीक कहती हो शामली" - बोधराम ने कहा - "लेकिन नीला हर बात में हमारा विरोध करती है"
"सूरज के प्रति आपके रुख ने उसे आहत किया था -- उसे लगने लगा है कि आप स्वार्थी हैं -- आप किसी का हित नहीं कर सकते -- मुझे भी लगता है कि सूरज के लिए आपने सही निर्णय नहीं लिया था -- तोरन समझता है कि सूरज को बाबू बना कर आपने उस पर बहुत बड़ा अहसान किया है। वह तो आपको देवता समझता है" - शामली का स्वर बहुत संयत था | वह नीला का पक्ष बोधराम को समझाने का प्रयास कर रही थी साथ ही उसे यह भी ध्यान रखना पड रहा था कि बोधराम उसकी बातों से आहत महसूस न करे |
"शामली तुम भी मुझे गलत समझती हो -- पर मैने जो भी किया अपने बच्चों के भविष्य के लिए किया" - बोधराम के स्वर में कातरता थी -"तुम्हें याद है न, -- दतिया में कोई भी हमारे घर पर काम करने को तैयार नहीं था -- मै तोरन को नहीं लाया होता तो खाना बनाने से लेकर चौका-बर्तन भी तुम्हें ही करना पड़ता -- यदि तोरन जैसे लोगों के बच्चे भी अफसर बन जाएंगे तो फिर हमारे चिंकू का क्या होगा -- अफसर का बेटा होकर क्या बाबू
बनकर धक्के खाने के लिए छोड दूं उसे -- किसी तरह चिंकू अफसर बन भी गया तो कौन
मिलेगा उसके घर पर काम करने के लिए -- मैने
सूरज को लेकर जो भी किया बहुत सोच समझ कर किया -- वह बाबू बनकर खुश है -- और तोरन भी"
शामली को कुछ भी नहीं सूझा कि क्या बोले | बाहर उसे कुछ गिरने की आवाज सुनाई दी तो वह बाहर निकली | हवा के झोंके से राधा-कृष्ण की मूर्ति गिरकर टूट गई थी |
तोरन टुकड़ों को समेटते हुए अपनी झोली में रख रहा था |
----
=== ----
अरुण अर्णव खरे
डी-1/35 दानिश नगर
होशंगबाद रोड
भोपाल (म०प्र०)
462
026
मोबा० 9893007744
ई मेल :
arunarnaw@gmail.com
पिछ्ले ३० वर्षों से लेखन, देश की सभी प्रमुख खेल पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं, व्यंग्य रचनाओं और खेल संबधी आलेखों का प्रकाशन, दो कविता संग्रह - "मेरा चांद और गुनगुनी धूप" और "रात अभी स्याह नहीं" तथा विभिंन खेल विषयों पर छ: पुस्तकों का प्रकाशन, रेडियो एवं दूरदर्शन पर खेल-वार्ताओं का नियमित प्रसारण
Subscribe to:
Posts (Atom)