कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Tuesday, January 10, 2017

बहुत चाहा



बहुत चाहा
तुम्हारी छवि को नयनों से निकालना,
पर दर्पण से प्रतिबिम्ब के अलग होने सा
अनहोना है यह
बार-बार
इस बात का सत्यापन होता रहा |

बहुत चाहा
तुम्हारे नाम को ह्रदय से निकाल कर
हवा में उछालना
पर चुम्बक से लोहे के विकर्षण सा
असंभव है यह
बार-बार
इस बात का उदाहरण मिलता रहा |

बहुत चाहा
तुम्हारी यादों को मन से निकालकर
विस्मृति मे सजा देना
पर गुलाब से सुरभि की विमुक्ति जितना ही
अनैसर्गिक है यह
बार-बार
इस तथ्य का प्रतिपादन होता रहा |

अतएव
संभव नहीं हुआ
तुम्हारी छवि को ह्रदय से निकालना
तुम्हारा नाम हवा में उछालना
तुम्हारी यादों को विस्मृति मे सजा पाना
तुम
कोसों दूर रह्कर भी
यहीं कहीं आस पास लगते हो
तुम्हारी सुधियां जब तब
शांत ह्र्दय-सरोवर में कंकर फेंक
लहरों को लहरा देती हैं
मुरझाते गुलाब की पंखुडियों को
फिर से खिला देती हैं
ऐसे ही क्षण तब
अमूल्य धरोहर बन जाते हैं |
और एक एक क्षण में हम
सौ-सौ युगों की जिंदगी जीने का
असीम सुख पाते हैं |


जीरो की ब्रांड वेल्यू
.... अरुण अर्णव खरे .... 

                                     कहने को तो जीरो का कोई बाजार-मूल्य नहीं है लेकिन जीरो की ब्रांड-वेल्यू का अपना एक बाजार है | जीरो इंटरेस्ट रेट और जीरो बैलेंस के प्रति तो आम भारतीयों का मोह अति गंभीर क़िस्म का है । शायद ज़ीरो की खोज भारत मे हुई थी इसलिए ज़ीरो के प्रति हमारा अनुराग विशेष दर्जे वाला है | कोई बैंक जरूरतमंदों को यदि जीरो इंटरेस्ट पर लोन देने लगे तो उसके सामने नोटबंदी-काल से भी ज्यादा लम्बी-लम्बी लाइनें लगने में देर नहीं लगेगी | जीरो बैलेंस पर टेलीफोन कम्पनियां अपने ग्राहकों को बात करने की सुविधा देने लगें तो क्या कहना | जिन अच्छे दिनों की लोग अर्से से प्रतीक्षा करते रहे हैं वो तो फिर आ ही गए समझो | आज लोगों को चाहिए क्या अनलिमिटेड डाटा और बात अथवा चेट करने की सुविधा -- वो भी जीरो बैलेंस पर -- सच मान लो बंजर जमीन पर भी बसंत बगरो-बगरो दिखाई देने लगेगा | कुछ-कुछ ऐसा ही जनधन खातों के साथ हुआ जब एकाएक सूखे पड़े खाते लबालब हो गए | सरकार ने जीरो बैलेंस पर करोड़ों खाते खुलवाए थे - लोगों ने भी पंद्रह लाख रुपए आने की उम्मीद में सरकार को सहयोग किया | सरकार चूकी तो नोटबंदी ने कमाल दिखा दिया | यह जीरो के विस्तार की विस्मयकारी दास्तान है जो अब व्यापक खोज के दायरे में है |

                               आजकल जीरो-टॉलरेंस और जीरो एफ०आई०आर० की भी खूब चर्चा होती है फिर भले ही इस पर अमल के समय जिम्मेदार ही इस व्यवस्था को जीरो बटे संनाटा कर डालें |  कुछ समय पहले ही बलात्कार के आरोप में एक नाबालिग पकड़ा गया था तब हमारे देश के समाजवाद के स्वघोषित स्वयंभू चैंपियन नेता जी की प्रतिक्रिया थी - " बच्चा है - बच्चों से गलती हो जाती है |" महिलाओं को उनके साथ हुए अत्याचारों की एफ०आई०आर० किसी भी पुलिस स्टेशन में जीरो पर दर्ज कराने की सुविधा सरकार ने दे रखी है पर कोई भी थानेदार ऐसी रिपोर्ट लिखना नहीं चाहता | उसे लगता है इधर उसने जीरो टॉलरेंस या जीरो एफ०आई०आर० में रुचि ली उधर उसका कैरियर जीरो हुआ |

                                    कमसिनी में भी जीरो का अपना अलग आकर्षण है | आज का हर युवा तो युवा, भूतपूर्व युवा तक चाहते हैं कि उनकी किस्मत में कोई जीरो-फिगर वाली हो | हर खाते-पीते घर की लड़की भी जीरो-फिगर में दिखना चाहती है | पता नहीं यह जीरो-फिगर का कनसेप्ट कहां से आया पर इसे जन-जन में लोकप्रिय बनाने का काम देवी करीना ने किया है । वही देवी करीना जिन्हें देखकर गांव की बड़ी-बूढ़ीं अक्सर उनके कुपोषित होने के भ्रम में रणधीर कपूर को कोसती रहती थी । जुम्मन चाचा तो यहां तक फरमाते थे कि देख कर पता ही नही चलता कि मोतरमा की कमर कहां से शुंरु होती है और कहां पर खतम होती है । करीना जीरो फिगर की देश की पहली ज्ञात आइकॉन हैं | सरकार यदि जीरो फिगर को राष्ट्रीय पहिचान का दर्जा दे तो करीना ही इसकी सच्ची ब्रांड एम्बेसडर हो सकती हैं |

                              एक समय था जब हममें से अधिकतर अंतरिक्ष को ही जीरो समझते थे जहां जाकर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण जीरो हो जाता है | टी०वी० युग में हमारे कुछ उर्जावान रिपोर्टर्स ने ग्राउंड-जीरो इसी जमीन पर ही खोज डाला | कारगिल और अफगानिस्तान से शुरुं हुई ग्राउंड-जीरो रिपोर्टिंग चुनाव के मौसम में बलिया और लखनादौन तक में अपना मुकाम खोजने में सफल रही है |

                                हाल के दिनों में जीरो राष्ट्रीयता की नई पहिचान बन कर उभरा है | नोट बदलवाने के लिए लाइनो में खड़े निरीह लोगों को कितनी ही बार इस बात से दो-चार होना पड़ा है - देश के लिए सेना का सिपाही जीरो से तीस डिग्री नीचे तापमान में सियाचिन में महीनों से खड़ा है और तुम देश के लिए दो-चार दिन लाइन में भी खड़े नहीं रह सकते | लोग भी देशभक्ति के इस मापक-पैमाने पर जीरो साबित होना नहीं चाहते थे सो जीरो हुई जेबों में हाथ डालकर मुस्कुराते रहे |

अरुण अर्णव खरे

डी-/३५ दानिश नगर

होशंगबाद रोड, भोपाल (म०प्र०) ४६२ ०२६

मोबा० ९८९३००७७४४   मेल : arunarnaw@gmail.com