कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Monday, April 15, 2013

मुझको क्या भय


चुभन को पाले हुए हम अपने पांवों में |
मुझको क्या भय
मैं तो दर्द-दुखों के गुरुकुल का स्नातक हूं |

फूलों से ज्यादा मुझको कांटे भाते हैं |
तट को छोड़ ज्वारों से मेरे नाते हैं |
कितनी बार पा चुका मैं कष्टों में अबतक |
प्रथम श्रेणी प्रथम आने पर स्वर्ण पदक |
दुश्मन को शरण रखे हम अपने गांवों में,
मुझको क्या भय
मैं तो जंजालों वाले रूपक का नायक हूं |

अच्छे लगते हैं महलों से ज्यादा खंडहर |
प्रिए लगते हैं मुझको कोलाहल के स्वर |
कितनी बार कटु अनुभवों में बुना गया मैं |
समूचे विध्यालय का प्रतिनिधि चुना गया मैं |
मंजिल सदा तलाशी है पथरीली राहों में,
मुझको क्या भय
मैं पतझरी गीतों का सच्चा गायक हूं |

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