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Tuesday, March 3, 2009

तीन मार्च का काला दिन

३ मार्च का दिन दुनिया के खेल इतिहास में सदा के लिये काले अक्शरों मे दर्ज हो गया है । इस दिन पाकिस्तान के शहर लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम के बाहर जो कुछ भी घटा उसने सारी मानवता को शर्मसार कर दिया । इस घटना की तुलना १९७२ मे ५ सितंबर को म्युनिख ओलिम्पिक के दौरान फिलीस्तीनी - गुरिल्लाओं द्वारा ११ इजराइली एथलीटों की हत्या से ही की जा सकती है । मानवता के दुश्मनों ने शांती और भाईचारे का संदेश देने वाले खेल मैदानों को भी अपने वहशीपन का ठिकाना बना लिया है यह सारी दुनिया के लिये चिंता का सबब है ।
लाहौर मे श्री लंका की टीम के ऊपर हुये आतंकवादी हमले में पांच श्री लंकाई खिलाडियों के घायल होने की खबर है तथा आम नागरिकों सहित सात या आठ सुरक्शा कर्मियों के मारे जाने की खबर है । पाकिस्तान में क्रिकेट की गतिविधियां वैसे भी सिमट गई है । कोई भी देश पाकिस्तान आकर खेलना नहीं चाहता । कोई भी अंतर्राश्ट्रीय टूर्नामेंट वहां आयोजित नहीं हो पा रहा है । चैंपियंस ट्राफी की मेजवानी उससे पहले ही छीनी जा चुकी है । अब इस घटना के बाद उसकी विश्व कप मेजबानी भी जा सकती है । २०११ के विश्व कप का वह भारत और श्री लंका के साथ सह-आयोजक है ।
जिस देश ने वहां क्रिकेट खेलने का साहस दिखाकर पाकिस्तान को वापस क्रिकेट की मुख्य धारा में लोटाने की कोशिश की उसे ही इसका सबसे बडा खामियाजा भुगतना पडा । सारी दुनिया में आतंकवाद के पोशक के रूप में कुख्यात पाकिस्तान के हाथों में भी अब आतंकवादियों की लगाम नहीं रह गई है । स्वात घाटी मे तालीबान के सामने घुटने टेक देने के सप्ताह भर के अंदर ही आतंकवादियों ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है कि अब उनकी अगली मंजिल पाकिस्तानी सत्ता पर अपनी धौंस जमाकर सारे पाकिस्तान में तालीबानी - सत्ता काबिज करना है ।
लाहौर मे श्री लंका की टीम के ऊपर हुये आतंकवादी हमले की जितनी निंदा की जाये कम ही है । आतंकवादी अपनी सफलता पर भले ही जश्न मनालें लेकिन दुनिया से मानवीय मूल्यों को वे कभी खत्म नहीं कर सकते । हर पाशविक शक्ति का विनाश भूतकाल में भी हुआ है और भविश्य में भी इसके लिये जगह नहीं है ।

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