कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Tuesday, February 12, 2013

मुक्तक



लगता है जैसे सबकुछ अपनी जगह ठहर गया है |
सब कुछ वैसा ही है फिर भी लगता नया नया है |
यह मोहब्बत है, प्यार है या है केवल आकर्षण
कोई तो बतलाए मुझको, आखिर माजरा क्या है |



लोगों से आप इस तरह ना मांगिये मशविरे |
कुछ पागल कहेंगें तो कुछ कहेंगें शिरफिरे |
पाने से ज्यादा जब मन केवल खोने का करे,
तो यही प्यार है, यही प्यार है अरे बावरे |




मन की भरी गागर भी जब रीती-रीती सी लगे |
हर धडकन सितार, हर सांस जब बांसुरी सी बजे |
यह प्यार का अहसास है पगले, इसमें डूबकर
टीस की अनुभूति भी सुखद, मीठी-मीठी सी लगे |




नयनों से नेह निमंत्रण दे, यूं बुलाया ना करो |
बेवजह अपने कंगन, चूडियां खनकाया ना करो |
कितनी बार कहा तुमसे, लजा जाता है चांद तक
छतपर बिना दुपट्टे के, अनायास जाया ना करो |


 

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