कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Friday, February 15, 2013

घर को तुमने शिवालय बनाया

मरूथल सा नीरव था जीवन मेरा,
तुमने शुभ-सुरभित चमन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस,
कोरे पृष्ठों को रामायण बना दिया |


तुमने होंठों से ना जितना कहा,
उससे अधिक वाचाल नयनो से कहा |
पहली मुलाकात मे जुबां ना खुली,
पर मन है ना फिर कभी बस मे रहा |


सुधियों से तुम्हारी मन कंचन हुआ,
साथ ने  देह को सुदर्शन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***


जिंदगी मे हर कदम कदम पर तुम,
छाया बनकर मेरे संग संग चले |
हताश ना कर सके मुझको कभी,
पथरीले रास्ते हों या फिर जलजले |


हर परीक्षा में सफल हम हुए और, 
मुझे महकता हुआ चंदन बना दिया |

लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***

तुमने रोपे थे जो पौधे कभी,
सुगंध उनकी भी अब छाने लगी है |
और सुवासित होगी बगिया हमारी,
ये उम्मीदें भी मन में जगी है |


घर को तुमने शिवालय बनाया,
जीवन-सफ़र को तीर्थाटन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***

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