गीत
मृगछोना मन
नीली गहराईयों में उभर आया प्रतिबिम्ब,
गुलाबी डोरों में बंध गया मृगछोना मन |
पहली नजर में ही
बीज प्रीति के अंकुरित हुए |
दिल की भाषा दिल ने पढ़ी
मन के भाव संप्रेषित हुए |
घट गए फासले सभी अपलक निहारते हुए
सांसों की उष्णता में हो गया सलोना मन |
उमंगों ने ले लिया फिर
इंद्रधनुषी आकार |
गगनचुम्बी सपनों को मिला
मनचाहा आधार |
इस उपकार का आभार व्यक्त कैसे करूं
सदा से चाहता था तुम्हारा ही होना मन |
अरुण अर्णव खरे
मृगछोना मन
नीली गहराईयों में उभर आया प्रतिबिम्ब,
गुलाबी डोरों में बंध गया मृगछोना मन |
पहली नजर में ही
बीज प्रीति के अंकुरित हुए |
दिल की भाषा दिल ने पढ़ी
मन के भाव संप्रेषित हुए |
घट गए फासले सभी अपलक निहारते हुए
सांसों की उष्णता में हो गया सलोना मन |
उमंगों ने ले लिया फिर
इंद्रधनुषी आकार |
गगनचुम्बी सपनों को मिला
मनचाहा आधार |
इस उपकार का आभार व्यक्त कैसे करूं
सदा से चाहता था तुम्हारा ही होना मन |
अरुण अर्णव खरे
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