जुगाड़ रॉकेट छोड़ने की
.... अरुण अर्णव खरे ....
दीवाली क्या आई सुबह से ही कालोनी के बच्चों का आना शुरुं हो गया - "अंकल, एक बोतल चाहिए रॉकेट चलाने के लिए"
पिछले साल भी बच्चे बोतलें ले गए थे अतएव इस वर्ष भी उनकी उम्मीद मुरारी जी पर टिकी हुई थी .. लेकिन उनकी श्री मति जी सारी बोतलें दीपावली से पूर्व ही कबाड़ी को समर्पित कर चुकी थी । मुरारी जी बच्चों को निराश होकर लौटता देख शर्मिंदा हुए जा रहे थे और श्रीमती जी का पारा थर्मामीटर तोड़ कर बाहर बाहर आने को बेताब था - "देखो क्या औक़ात है तुम्हारी कॉलोनी में .. बड़े तो बड़े बच्चे तक तुम्हें बेवड़ा समझते हैं और एक तुम हो इसे अपनी शान समझते हो "
श्री मती जी का बड़बड़ाना स्कूटर के फटे सायलेंसर जैसा चालू था कि मुरारी के फुफेरे भाई का बेटा गया । उसे देख कर श्री मती जी की आवाज़ में घिर्रररर के साथ ब्रेक लग गया । उसने दोनों के चरण छूकर आशीर्वाद लिया । खाया-पीया और जब उसके जाने का समय हुआ तो बोला - "ताई जी, हमें दो बोतलें दे दीजिए"
इतना सुनते ही श्री मती जी एक हज़ार डेसीबल की आवाज़ वाले बम की तरह फट पड़ीं - "चल भाग यहाँ से .. बड़ा आया बोतल लेने .. क्या बिहार और गुजरात के लोग रॉकेट नहीं चलाते .. पूँछ उनसे कैसे चलाते हैं .. नहीं बताते तो इसरो वालों से पूँछ .. कैसे छोड़ते हैं वे पी०एस०एल०वी० .. वो भी नहीं बताएँ तो गूगल पर सर्च कर .. पर दोबारा हमारे पास बोतल माँगने मत आना"
लड़का उल्टे पैर दौड़ लगाकर भागा । ग़ुस्से में ही सही पर श्री मती जी की कही गई बातों में मुरारी को उनकी विद्वता के दर्शन हुए । उसे एक प्रसंग याद आ गया । अमेरिका मे अनेक प्रयत्नों के बाद भी रॉकेट अपने लॉंचपेड से ऊपर ही नहीं जा रहा था । दूर से यह दृश्य देख रहे एक जुगाड़ू भारतीय से रहा नहीं गया, वह वहीं से चिल्लाकर बोला - "रॉकेट को पैंतालीस डिग्री झुकाकर फ़ायर करो"
हताश अमरीकियों ने ऐसा ही किया और रॉकेट सचमुच आसमान की ओर उड़ चला । सबने उस जुगाड़ू को घेर लिया और तरह तरह के प्रश्न दागने लगे । सकपकाए जुगाड़ू ने बताया - "भैया मैं कोई विज्ञानिक इज्ञानिक नहीं .. वो तो मेरा स्कूटर जब स्टार्ट नहीं होता तो मैं उसे झुकाकर स्टार्ट करता हूँ ..बस मेरा काम हो जाता है "
सच कहा उसने । सीधा आदमी कहाँ आसमान छू पाता है लेकिन टेड़ा आदमी पलक झपकते ही सफलता की ऊंचाईयॉं छूने लगता है । राजनीति तो टेड़े लोगो के लिए पहले से ही थी अब तो साहित्य तक में टेड़े लोगों का बोलबाला है ।
ख़ैर बात बोतल और रॉकेट की चल रही थी । लोग गूगल पर सर्च करके परेशान थे लेकिन वह भी असमर्थ नज़र आ रहा था और ऊलजलूल तरकीबें सुझा रहा था । हाऊ टू प्रोपेल रॉकेट इन दीपावली सर्च करो तो बॉटल-रॉकेट की टेक्नीक से लेकर बनाने तक की विधियाँ गूगल बता रहा है लेकिन विदाउट बॉटल लिखते ही बग़लें झॉंकने लगता है । दीपावली पर रॉकेट बोतल मे रख कर छोड़ने की सदियों पुरानी परंपरा है देश में जो जाँची-परखी और सौ फीसदी पुख़्ता है । अब जब बोतलों पर बिहार में सख़्त पाबंदी लगा दी गई है तो बच्चों के सामने रॉकेट छोड़ने का धर्म संकट खड़ा हो जाना स्वभाविक है ।
इस विषम स्थिति में फिर वही जुगाड़ू व्यक्ति काम आया । बच्चों को निराश देख कर वह चिल्लाया - "बच्चो, सरकार ने दारू पर पाबंदी लगाई है मैगी की सॉस पर नहीं । तुम सब मैगी की बोतलों से रॉकेट छोड़ो । बच्चे खुशी से उछल पड़े पर बिचारी मम्मियां दुखी हो गईं । जिन्होंने कुछ समय पहले ही सॉस की बोतल ली थी अब उनके सामने उसे बचाकर रंखने की समस्या सर उठाए खड़ी थी ।
अरुण अर्णव
खरे
डी-१/३५ दानिश
नगर
होशंगबाद
रोड, भोपाल (म०प्र०) ४६२ ०२६
मोबा०
९८९३००७७४४ ई मेल : arunarnaw@gmail.com
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