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Wednesday, February 25, 2009

टेनिस में बढ़ती भारतीय साख

भारत भले ही डेविस कप के विश्व-समूह से पिछले एक दशक से बाहर हो पंरतु ए.टी.पी. सर्किट में भारतीय टेनिस खिलाड़ियों की साख में दिनों-दिन इजाफा हो रहा है। पिछले दो तीन वर्षो में लिएण्डर पेस एवं महेश भूपति के अलावा भी अनेक भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है । इस वर्ष का आगाज भी भारतीय खिलाड़ियों के लिए शुभ और फलदायी रहा है । वर्ष के पहले टूर इवेण्ट चैन्नई ओपन में सोमदेव देववर्मन ने फायनल तक का सफर तय कर शानदार प्रदर्शन किया । फायनल तक के सफर में उन्होंने पूर्व विश्व नंबर एक स्पेन के कार्लोस मोया तथा घमाकेदार सर्विस करने वाले क्रोएशिया के इवो कार्लोविक को शिकस्त दी । इस सफलता के साथ 23 वर्षीय यह खिलाड़ी पिछले एक दशक में किसी ए.टी.पी. स्पर्द्धा के सिंगल्स फायनल में पहुंचने वाला मात्र तीसरा भारतीय खिलाड़ी बन गया ।
तत्पश्चात्‌ आस्टेलियाई-ओपन स्पर्द्धा में भारतीय खिलाड़ियों ने करिश्माई प्रदर्शन किया । यह पहला अवसर था जब किसी ग्राण्ड-स्लेम स्पर्धा में भारत ने दो खिताब जीते तथा एक में उपविजेता रहने का सम्मान अर्जित किया । इस स्पर्धा में बालकों के जूनियर वर्ग में 16 वर्षीय यूकी भॉवरी की विजय खासतौर पर आहलादकारी रही । इस विजय के साथ ही यूकी ना केवल दुनिया के नंबर एक जुनियर खिलाड़ी बन गए अपितु अपनी खेल-शैली, विविधता पूर्ण स्ट्रोक्स और कौशल से सभी को प्रभावित करने में सफल रहें । उनके अभ्युदय के साथ भारत को भविष्य का एक बेहतर एकल खिलाड़ी मिलने का विश्वास हो गया है । पूर्व में जो अपेक्षाएं प्रकाश अमृतराज, रोहन बोपन्ना, हर्ष मांकड़ आदि पूरी नहीं कर सके थे वे यूकी भॉवरी से पूरी हो सकती है । यूकी के पास बढ़िया सर्विस है, बेहतर कोर्ट कवरेज है तथा सबसे ऊपर जीतने की जिजीविषा है । जूनियर वर्ग से सीनियर वर्ग मे आने के दौरान जिस मानसिक दृढ़ता तथा लगन की जरूरत होती है वह यूकी के लिए परीक्षा की घड़ी होगी क्योंकि इसी दौरान बहुत से युवा-खिलाड़ी स्पर्द्धा के स्तर के अंतर को देखकर, मानसिक संत्रास में आ जाते है और सीनियर वर्ग में आकर गुमनाम हो जाते है । जीशान अली और नितिन कीर्तन इसके बेहतर उदाहरण है । दोनों ने ही जूनियर वर्ग में बेहतरीन प्रदर्शन किया किंतु सीनियर वर्ग में आते ही वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सकें । यूकी अभी किशोरवय में ही है तथा उनके पास सीनियर वर्ग में पैर जमाने के लिए भरपूर समय है । उन्हे जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए तथा होले-होले किंतु मजबूती के साथ अपने कदम बढाने चाहिए ।
सोमदेव देवबर्मन ने इस वर्ष पहली बार किसी ए.टी.पी. स्पर्द्धा के फायनल में पहुचने का करिश्मा किया । वह भारतीय सर्किट में काफी समय से सक्रिय थे लेकिन अमेरिका में रहते हुए उनके खेल में आशातीत सुधार हुआ है । वह डेविस कप टीम में भी स्थान पा चुके है । वर्तमान में भारत के पास एक भी भरोसेमंद एकल खिलाड़ी नहीं है जिस कारण भारत एक दशक से भी अधिक समय से विश्व-समूह में स्थान नहीं बना पा रहा है । भारत आखिरी बार 1998 में विश्व-समूह में खेला था । सोमदेव इस कमी को पूरा कर सकते है । लेकिन इसके लिए उन्हें निरंतर विश्व स्तर पर स्थापित खिलाड़ियों के विरूद्ध खेल कर अपने कौशल को निखारना होगा तथा मानसिक परिपक्वता दर्शानी होगी । वह 23 साल के हो चुके है तथा उन्हें स्वंय को सिद्ध करने के लिए बहुत अधिक अवसर नहीं मिल सकेगें । टेनिस संघ की नई नीति के तहत, जिसमें विदेशी नागरिकता वाले खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेंगे '' प्रकाश अमृतराज शायद ही डेविस कप टीम में स्थान बना पाएं । ऐसी स्थिति में सोमदेव के ऊपर ही डेविस कप जोनल मुकाबलों में भारत के एकल मुकाबलों का दारोमदार होगा । उन्हें अपने को स्थापित करने का इससे बेहतर अवसर उपलब्ध नहीं हो सकता ।
रोहन बोपन्ना भी ए.टी.पी. सर्किट में एक परिचित भारतीय चेहरा हैं । एकल में तो वह कुछ खास नहीं कर सके है लेकिन युगल में वह शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं । हाल ही में उन्होंने फिनलेण्ड के अपने साथी खिलाड़ी जार्को नेमीनेन के साथ दुनिया की नंबर एक जौड़ी अमेरिका के ब्रायन बंधुओं-बॉब एवं माइक को हराया है । सेन जोस, अमेरिका में खेली गई सेप ओपन में दोनों उपविजेता रहें । गत वर्ष बोपन्ना ने लास एजेल्स स्पर्द्धा में युगल खिताब जीता था तब उनके जौड़ीदार अमेरिका के एरिक ब्यूरोरेक थे । गत वर्ष ही वह दो अन्य स्पर्द्धाओं में उपविजेता रहे थे । वह आगे युगल में महेश-भूपति व लिएण्डर पेस से रिक्त होने वाले स्थान की पूर्ति कर सकते हैं, लेकिन वह भी बहुत युवा नहीं है । वह विलम्ब से विकसित होने वाले खिलाड़ियों की श्रेणी में रखे जा सकते है तथा यदि इसी प्रकार उनके खेल में निखार आता रहा तो वह अगले पांच वर्षो तक अपनी सेवाएं भारत की डेविस कप टीम में दे सकते है ।
अब चर्चा सानिया मिर्जा की । पिछला वर्ष इस हैदराबादी वाला के लिए काफी दुखद रहा था तथा वह विश्व रेंकिग में 30 वें स्थान से फिसल कर 137 वें स्थान तक जा पहुची थी । वर्ष 2009 उनके लिए और भारत के लिए भी नई उम्मीदें लेकर आया हैं । वह इस वर्ष वापस 100 खिलाड़ियों की फेहरिस्त में आ गई हैं । हाल ही में उन्होंने पट्टाया ओपन में अपने से ऊंची रेंकिग वाली खिलाड़ियों को हराकर उपविजेता का ताज पहना है । वर्ष की पहली ग्राण्ड स्लेम स्पर्द्धा आस्टेलियन ओपन में उन्होंने महेश भूपति के साथ मिलकर सहयुगल खिताब जीता था । यह उनका पहला ग्रेण्ड स्लेम खिताब है । गतवर्ष वह इसी स्पर्द्धा में रनर्स-अप रही थी । इस वर्ष उनसे ग्रेण्ड स्लेम सहित अन्य स्पर्द्धाओं में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद हैं । अब वह पहले से अधिक परिपक्व हो गई है तथा अपनी सेहत का भी खास ख्याल रख रही हैं । पिछले वर्ष वह अपनी चोटों से काफी पेरशान रहीं तथा इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा । इस वर्ष वह चुनिदा स्पर्द्धाओं में ही खेलकर इसकी भरपाई कर सकती है ।
कुल मिलाकर इस वर्ष अब तक टेनिस सर्किट में सक्रिय भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन काफी सधा हुआ रहा है । पुराने धुरंधर लिएण्डर पेस और महेश भूपति अपनी पुरानी चमक बरकरार रखे हुए हैं । सानिया मिर्जा की वापसी उम्मीद जगाने वाली है । सोमदेव देवबर्मन और युकी भांवरी भविष्य की उम्मीदों के पोषक बन कर उभरे हैं । उम्मीदों के ये सभी कितना परवान चढ़ा पाते हैं देखना दिलचस्प रहेगा ।

3 comments:

  1. खेल संबंधी एक समर्पित हिन्दी ब्लॉग की जरूरत आप पूरा करेंगे ऐसी उम्मीद है. शुभकामनाएँ.

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  2. खेल दुनिया की अच्छी जानकारी प्रदान कर रहें हैं आप.....शुभकामनाऎं.

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